Sunday, September 14, 2014

कैंसर : कारण एवं निवारण

हम इस ब्लाग मे जो भी जानकारी दे रहे है, वो जानकारी इंटरनेट से निकाली गई है | इस मे हमारी व्यक्तिगत कोई भी लेख नही है |

कैंसर एक ऐसी बिमारी है जिसे सुनकर ही मृत्यु का भय सताने लगता है । इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाई जाती है कि कैसे इससे बचा जा सके तथा क्या उपचार किया जाये । अनुमानत: अमेरिका में प्रतिवर्ष लगभग दो लाख व्यक्तियों की मृत्यु कैंसर से होती है । तम्बाकू के अधिक सेवन, मोटापा, शारीरिक श्रम का अभाव तथा अल्पाहार से भी कैंसर होता है । भारत में २०१० में लगभग पाँच लाख लोगों की मृत्यु कैंसर से हो चुकी है । विश्व में कैंसर से मरने वालों में भारत द्वितीय स्थान पर है । पुरूषों में मुँह (२३%), अमाशय (१३%), फेफड़ों (११%) तथा स्त्रियों में गदर्न (१७%), आमाशय (१४%) एवं स्तन (१०%) कैंसर मुख्य रूप से होता है ।



     कैंसर में कोशिकाआें का विभाजन अनियंत्रित गति से होता है जिसे मेडिकल भाषा में नई वृद्धि (न्यूओप्लास्म) कहा जाता है । जब साधारण वृद्धि किसी एक स्थान पर सीमित होती है तो उसे अर्बुद कहते हैं जो कि कैंसर कारक नहीं होता । लेकिन जब यह अर्बुद निकटवर्ती कोशिकाआें को प्रभावित करता है तब इसे कैंसर युक्त कहा जाता है । कैंसर का एक स्थान से दूसरे स्थान पर फैलना अपरूपान्तरण (मेटासिस) कहलाता है ।

    कैंसर के योगदान मेंदो जीन मुख्य होते हैं जिन्हें आन्कोजीन, तथा सप्रेसर जीन कहा जाता है । आन्कोजीन सामान्य कोशिका विभाजन करते है लेकिन जब अधिकता हो जाती है तो अर्बुद बनता है । इसके विपरीत सप्रेसर जीन कोशिका विभाजन रोकती है या उसकी मृत्यु हो जाती है । इसे एपोटोसिस कहते हैं, यदि यह जीन लुप्त् है या काम नहीं कर रहा है तो आन्कोजीन का प्रभाव कम नहीं होता है तथा कोशिका.....................................................................................................................more

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