Sunday, September 14, 2014

गर्भावस्‍था में खायें ये आहार

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साबुत अनाज

गर्भवती महिलाओं को साबुत अनाज खाना चाहिए। साबुत अनाज जैसे - दलिया, पास्‍ता, गेहूं, चावल आदि में कार्बोहाइड्रेट, आयरन और विटामिन भरपूर मात्रा में मौजूद होता है। इनमें फाइबर और फोलिक एसिड भी होता है।


बीन्‍स
फलियों में भरपूर मात्रा में विटामिन, कैल्सियम, प्रोटीन और आयरन जैसे पोषक तत्‍व मौजूद होते हैं। बीन्‍स कई प्रकार के होते हैं, जैसे - काले सेम, सफेद सेम, अबलख़ सेम, मसूर, काले आंखवाले मटर और सोया सेम आदि। प्रेग्‍नेंसी में नियमित बीन्‍स खाने से आयरन की कमी नही................................................more
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कैंसर : कारण एवं निवारण

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कैंसर एक ऐसी बिमारी है जिसे सुनकर ही मृत्यु का भय सताने लगता है । इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाई जाती है कि कैसे इससे बचा जा सके तथा क्या उपचार किया जाये । अनुमानत: अमेरिका में प्रतिवर्ष लगभग दो लाख व्यक्तियों की मृत्यु कैंसर से होती है । तम्बाकू के अधिक सेवन, मोटापा, शारीरिक श्रम का अभाव तथा अल्पाहार से भी कैंसर होता है । भारत में २०१० में लगभग पाँच लाख लोगों की मृत्यु कैंसर से हो चुकी है । विश्व में कैंसर से मरने वालों में भारत द्वितीय स्थान पर है । पुरूषों में मुँह (२३%), अमाशय (१३%), फेफड़ों (११%) तथा स्त्रियों में गदर्न (१७%), आमाशय (१४%) एवं स्तन (१०%) कैंसर मुख्य रूप से होता है ।



     कैंसर में कोशिकाआें का विभाजन अनियंत्रित गति से होता है जिसे मेडिकल भाषा में नई वृद्धि (न्यूओप्लास्म) कहा जाता है । जब साधारण वृद्धि किसी एक स्थान पर सीमित होती है तो उसे अर्बुद कहते हैं जो कि कैंसर कारक नहीं होता । लेकिन जब यह अर्बुद निकटवर्ती कोशिकाआें को प्रभावित करता है तब इसे कैंसर युक्त कहा जाता है । कैंसर का एक स्थान से दूसरे स्थान पर फैलना अपरूपान्तरण (मेटासिस) कहलाता है ।

    कैंसर के योगदान मेंदो जीन मुख्य होते हैं जिन्हें आन्कोजीन, तथा सप्रेसर जीन कहा जाता है । आन्कोजीन सामान्य कोशिका विभाजन करते है लेकिन जब अधिकता हो जाती है तो अर्बुद बनता है । इसके विपरीत सप्रेसर जीन कोशिका विभाजन रोकती है या उसकी मृत्यु हो जाती है । इसे एपोटोसिस कहते हैं, यदि यह जीन लुप्त् है या काम नहीं कर रहा है तो आन्कोजीन का प्रभाव कम नहीं होता है तथा कोशिका.....................................................................................................................more

शरीर मे सारी बीमारियाँ वात-पित्त और कफ के बिगड़ने से ही होती हैं ! -2

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सबसे पहले आप हमेशा ये बात याद रखें कि शरीर मे सारी बीमारियाँ वात-पित्त और कफ के बिगड़ने से ही होती हैं !


अब आप पूछेंगे ये वात-पित्त और कफ क्या होता है ??? 

बहुत ज्यादा गहराई मे जाने की जरूरत नहीं आप ऐसे समझे की सिर से लेकर छाती के बीच तक जितने रोग होते हैं वो सब कफ बिगड़ने के कारण होते हैं ! छाती के बीच से लेकर पेट और कमर के अंत तक जितने रोग होते हैं वो पित्त बिगड़ने के कारण होते हैं !और कमर से लेकर घुटने और पैरों के अंत तक जितने रोग होते हैं वो सब वात बिगड़ने के कारण होते हैं !

हमारे हाथ की कलाई मे ये वात-पित्त और कफ की तीन नाड़ियाँ होती हैं ! भारत मे ऐसे ऐसे नाड़ी विशेषज्ञ रहे हैं जो आपकी नाड़ी पकड़ कर ये बता दिया करते थे कि आपने एक सप्ताह पहले क्या खाया एक दिन पहले क्या खाया -दो  दिन पहले क्या खाया !! और नाड़ी पकड़ कर ही बता देते थे कि आपको क्या रोग है ! आजकल ऐसी बहुत ही कम मिलते हैं !

शायद आपके मन मे सवाल आए ये वात -पित्त कफ दिखने मे कैसे होते हैं ???

तो फिलहाल आप इतना जान लीजिये ! कफ और पित्त लगभग एक जैसे होते हैं ! आम भाषा मे नाक से निकलने वाली बलगम को कफ कहते हैं ! कफ थोड़ा गाढ़ा और चिपचिपा होता है ! मुंह मे से निकलने वाली बलगम को पित्त कहते हैं ! ये कम चिपचिपा और द्रव्य जैसा होता है !! और शरीर से निकले वाली वायु को वात कहते हैं !! ये अदृश्य होती है !

कई बार पेट मे गैस बनने के कारण सिर दर्द होता है तो इसे आप कफ का रोग नहीं कहेंगे इसे पित्त का रोग कहेंगे !! क्यूंकि पित्त बिगड़ने से गैस हो रही है और सिर दर्द हो रहा है ! ये ज्ञान बहुत गहरा है खैर आप इतना याद रखें कि इस वात -पित्त और कफ के संतुलन के बिगड़ने से ही सभी रोग आते हैं ! 

और ये तीनों ही मनुष्य की आयु के साथ अलग अलग ढंग से बढ़ते हैं ! बच्चे के पैदा होने से 14 वर्ष की आयु तक कफ के रोग ज्यादा होते है ! बार बार खांसी ,सर्दी ,छींके आना आदि होगा ! 14 वर्ष से 60 साल तक पित्त के रोग सबसे ज्यादा होते हैं बार बार पेट दर्द करना ,गैस बनना ,खट्टी खट्टी डकारे आना आदि !! और उसके बाद बुढ़ापे मे वात के रोग सबसे ज्यादा होते हैं घुटने दुखना ,जोड़ो का दर्द आदि ........................................................................................................more

Saturday, September 13, 2014

वात-पित्त-कफ रोग

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पित्त के रोग होने का कारण
पित्त एक प्रकार का पाचक रस होता है लेकिन यह विष (जहर) भी होता है। पित्त क्षारमय (पतला रस) तथा चिकनाई युक्त लसलसा होता है तथा इसका रंग सुनहरा तथा गहरा पिस्तई युक्त होता है। पित्त का स्वाद कड़वा होता है। पाचनक्रिया में पित्त का कार्य महत्वपूर्ण होता है। यह आंतों को उसके कार्य को करने में मजबूती प्रदान करता है तथा उन्हें क्रियाशील बनाए रखता है। पित्त शरीर के अन्य पाचक रसों को भी उद्दीप्त करता है अर्थात उनकी कार्यशीलता को बढ़ा देता है। इसके अलावा पित्त एक और भी कार्य करता है। पित्त जब पित्ताशय में होता है तो उसमें सड़न रोकने की शक्ति नहीं होती है, लेकिन आंतों में पहुंचकर खाद्य पदार्थ जल्द सड़ने से रोकता है। यदि किसी प्रकार से आंतों में पित्त का पहुंचना रोक दिया जाए तो खाद्य पदार्थ बहुत ही जल्द सड़कर गैस उत्पन्न करने लगेंगे और रोग उत्पन्न हो जायेगा। यदि पेट में वायु बनने लगे तो पित्त का रोग और भी जल्दी होता है।

पित्त के रोग होने का कारण:-

  1. . शराब, मांस, अंडे तथा तम्बाकू का सेवन करने के कारण पित्त का रोग उत्पन्न हो जाता है।
  2. . तले हुए तेज मिर्च-मसालेदार पदार्थों का भोजन में अधिक सेवन करने से पित्त का रोग हो सकता है।
  3. . पानी कम पीने के कारण भी पित्त का रोग हो सकता है।
  4. . जब 1 बार किया गया भोजन न पचे और उससे पहले ही व्यक्ति दुबारा भोजन कर ले तो उसे पित्त का रोग हो सकता है।
  5. . अधिक तनावपूर्ण जीवन तथा मानसिक रूप से परेशान रहने के कारण भी पित्त का रोग हो सकता है।
  6. . व्यायाम न करने के कारण भी पित्त का रोग हो सकता है।
  7. . किसी कारण से आमाशय के अंदर पित्त जमा हो जाने के कारण भी पित्त का रोग हो सकता है।

पित्त के रोग होने के लक्षण:-

  1. . पित्त के रोग हो जाने के कारण रोगी के शरीर में गर्मी बढ़ जाती है।
  2. . इस रोग से पीड़ित रोगी के छाती, गले तथा पेट में जलन होने लगती है।
  3. . इस रोग के कारण रोगी के सिर में दर्द होने लगता है।.........................................................more

Tuesday, September 9, 2014

रक्‍तदान

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खून चढाने की जरूरत:-

जीवन बचाने के लिए खून चढाने की जरूरत पडती है। दुर्घटना,  रक्‍तस्‍त्राव,  प्रसवकाल और ऑपरेशन आदि अवसरों में शामिल है,  जिनके कारण अत्‍यधिक खून बह सकता है और इस अवसर पर उन लोगों को खून की आवश्‍यकता पडती है। थेलेसिमिया,  ल्‍यूकिमिया,  हीमोफिलिया जैसे अनेंक रोगों से पीडित व्‍यक्तियों के शरीर को भी बार-बार रक्‍त की आवश्‍यकता रहती है अन्‍यथा उनका जीवन खतरे में रहता है। जिसके कारण उनको खून चढाना अनिवार्य हो जाता है।

रक्‍तदान की आवश्‍यकता:-

इस जीवनदायी रक्‍त को एकत्रित करने का एकमात्र् उपाय है रक्‍तदान। स्‍वस्‍थ लोगों द्वारा किये गये रक्‍तदान का उपयोग जरूरतमंद लोगों को खून चढानें के लिये किया जाता है। अनेक कारणों से जैसे उन्‍नत सर्जरी के बढतें मामलों तथा फैलती जा रही जनसंख्‍या में बढती जा रही बीमारियों आदि से खून चढाने की जरूरत में कई गुना वृद्वि हुई है। लेकिन रक्‍तदाताओं की कमी वैसी ही बनी हुई है। लोगों की यह धारणा है कि रक्‍तदान से कमजोरी व नपूसंकता आती है, पूरी तरह बेबूनियाद है।  आजकल चिकित्‍सा क्षेत्र में कॅम्‍पोनेन्‍ट थैरेपी विकसित हो रही है,  इसके अन्‍तर्गत रक्‍त की इकाई से रक्‍त के विभिन्‍न घटकों को पृथक कर जिस रोगी को जिस रक्‍त की आवश्‍यकता है दिया जा सकता है इस प्रकार रक्‍त की एक इकाई कई मरीजों के उयोग में आ सकती है।..............................................................................................................................................................................................more

Saturday, September 6, 2014

तुलसी का औषधीय महत्त्व

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भारतीय संस्कृति और धर्म में तुलसी को उसके महान गुणों के कारण ही सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है। भारतीय संस्कृति में यह पूज्य है। तुलसी का धार्मिक महत्व तो है ही लेकिन विज्ञान के दृष्टिकोण से तुलसी एक औषधि है। तुलसी को हजारों वर्षों से विभिन्न रोगों के इलाज के लिए औषधि के रूप में प्रयोग किया जा रहा हैं। आयुर्वेद में तुलसी तथा उसके विभिन्न औषधीय प्रयोगों का विशेष स्थान हैं। आयुर्वेद में तुलसी को संजीवनी बूटी के समान माना जाता है। आपके आंगन में लगा छोटा सा तुलसी का पौधा, अनेक बीमारियो का इलाज करने के आश्चर्यजनक गुण लिए हुए होता हैं। तुलसी में कई ऐसे गुण होते हैं जो बड़ी-बड़ी जटिल बीमारियों को दूर करने और उनकी रोकथाम करने में सहायक है। हृदय रोग हो या सर्दी जुकाम, भारत में सदियों से तुलसी का इस्तेमाल होता चला आ रहा है। औषधि ये गुणों से परिपूर्ण पौराणिक काल से प्रसिद्ध पतीत पावन तुलसी के पत्तों का विधिपूर्वक नियमित औषधितुल्य सेवन करने से अनेकानेक बीमारियाँ ठीक हो जाती है। इसके प्रभाव से मानसिक शांति घर में सुख समृद्धि और जीवन में अपार सफलताओं का द्वार खुलता है। यह ऐसी रामबाण औषधी है जो हर प्रकार की बीमारियों में काम आती है जैसे - स्मरण शक्ति, हृदय रोग, कफ, श्वास के रोग, प्रतिश्याय, ख़ून की कमी, खॉसी, जुकाम, दमा, दंत रोग, धवल रोग आदि में चमत्कारी लाभ मिलता है। तुलसी एक प्रकार से सारे शरीर का शोधन करने वाली जीवन शक्ति संवर्धक औषधि है। वातावरण का भी शोधन करती है तथा पर्यावरण संतुलन बनाती है। इस औषधि के विषय में जितना लिखा जाए कम है।

औषधीय गुण

तुलसी का तेल

जड़ सहित तुलसी का हरा भरा पौधा लेकर धो लें, इसे पीसकर इसका रस निकालें। आधा लीटर पानी- आधा लीटर तेल डालकर हल्की आंच पर पकाएं, जब तेल रह जाए तो छानकर शीशी में भर कर रख दें। तेल बन गया। इसे सफेद दाग़ पर लगाएं। इन सब इलाज के लिए धैर्य की जरूरत है। कारण ठीक होने में समय लगता है।

सामान्य प्रयोग

तुलसी की पाँच पत्तियॉं, 2 नग काली मिर्च का चूर्ण, रात को पानी में भीगी हुई 2 नग बादाम का छिलका निकालकर फिर उसकी चटनी बनाकर एक चम्मच शहद के साथ सेवन करें एवं लगभग आधा घण्टा अन्न-जल ग्रहण ना करे।
तुलसी के पत्तों को साफ़ पानी में उबाल ले उबाले जल को पीने में उपयोग करें। कुल्ला करने में भी इसका उपयोग कर सकते है।
2-3 पत्तिया ले और छाछ या दही के साथ सेवन करें। बहुत सारी आयुर्वेदिक कम्पनियां अपने जीवनदायी औषधीयों में तुलसी का उपयोग करती है।

व्यावहारिक प्रयोग
जड़, पत्र, बीज व पंचांग प्रयुक्त करते हैं। मात्रा - स्वरस- 10 से 20 ग्राम । बीज चूर्ण- 1 से 2 ग्राम । क्वाथ-1 से 2 औंस ।

तुलसी का रोगों में उपयोग

 गले और साँस की समस्या

खाँसी अथवा गला बैठने पर तुलसी की जड़ सुपारी की तरह चूसी जाती है।
श्वांस रोगों में तुलसी के पत्ते काले नमक के साथ सुपारी की तरह मुँह में रखने से आराम मिलता है।
तुलसी की हरी पत्तियों को आग पर सेंक कर नमक के साथ खाने से खांसी तथा गला बैठना ठीक हो जाता है।
तुलसी के पत्तों के साथ 4 भुनी लौंग चबाने से खांसी जाती है।
तुलसी के कोमल पत्तों को चबाने से खांसी और नजले से राहत मिलती है।
खांसी-जुकाम में - तुलसी के पत्ते, अदरक और काली मिर्च से तैयार की हुई चाय पीने से तुरंत लाभ पहुंचता है।

10-12 तुलसी के पत्ते तथा 8-10 काली मिर्च के चाय बनाकर पीने से खांसी जुकाम, बुखार ठीक होता है।
फेफड़ों में खरखराहट की आवाज़ आने व खाँसी होने पर तुलसी की सूखी पत्तियाँ 4 ग्राम मिश्री के साथ देते हैं।
काली तुलसी का स्वरस लगभग डेढ़ चम्मच काली मिर्च के साथ देने से खाँसी का वेग एकदम शान्त होता है।
10 ग्राम तुलसी के रस को 5 ग्राम शहद के साथ सेवन करने से हिचकी, अस्थमा एवं श्वांस रोगों को ठीक किया जा सकता है।
जुकाम में तुलसी का पंचांग व अदरक समान भाग लेकर क्वाथ बनाते हैं। इसे दिन में तीन बार लेते हैं।
अदरक या सोंठ, तुलसी, कालीमिर्च, दालचीनी थोड़ा-थोडा सबको मिलाकर एक ग्लास पानी में उबालें, जब पानी आधा रह जाए तो शक्कर नमक मिलाकर पी जाएं। इससे फ्लू, खांसी, सर्दी, जुकाम ठीक होता है।
तुलसी के पत्ते 10, काली मिर्च 5 ग्राम, सोंठ 15 ग्राम, सिके चने का आटा 50.................................................................................more

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Thursday, September 4, 2014

How to Clean the Windows Registry by Hand

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As your registry grows in size, your operating system's performance may be compromised. Third-party registry cleaners may not have the best logic and algorithms to effectively clean all registries. They perform cleaning tasks based upon a predefined set of rules that may not work in your registry, or even a healthy registry, let alone a bloated or corrupted one.

Fortunately, you can clean your registry manually to remove leftover application entries after uninstalls and unnecessary start-up items. Just see Step 1 below to get started.

Name Your Link Note: This article is meant for more experienced Windows users. If done improperly, trying this could cause problems with your computer.

1Launch the Windows registry editor.
Click on the "Start" button, then select "Run...".

Clean the Windows Registry by Hand Step 1Bullet1 Version 2.jpg

Type regedit inside of the text box.

Clean the Windows Registry by Hand Step 1Bullet2 Version 2.jpg

Press "Enter" or click on "Ok"...................................................more

Wednesday, September 3, 2014

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