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पित्त के रोग होने का कारण
पित्त के रोग होने का कारण
पित्त एक प्रकार का पाचक रस होता है लेकिन यह विष (जहर) भी होता है। पित्त क्षारमय (पतला रस) तथा चिकनाई युक्त लसलसा होता है तथा इसका रंग सुनहरा तथा गहरा पिस्तई युक्त होता है। पित्त का स्वाद कड़वा होता है। पाचनक्रिया में पित्त का कार्य महत्वपूर्ण होता है। यह आंतों को उसके कार्य को करने में मजबूती प्रदान करता है तथा उन्हें क्रियाशील बनाए रखता है। पित्त शरीर के अन्य पाचक रसों को भी उद्दीप्त करता है अर्थात उनकी कार्यशीलता को बढ़ा देता है। इसके अलावा पित्त एक और भी कार्य करता है। पित्त जब पित्ताशय में होता है तो उसमें सड़न रोकने की शक्ति नहीं होती है, लेकिन आंतों में पहुंचकर खाद्य पदार्थ जल्द सड़ने से रोकता है। यदि किसी प्रकार से आंतों में पित्त का पहुंचना रोक दिया जाए तो खाद्य पदार्थ बहुत ही जल्द सड़कर गैस उत्पन्न करने लगेंगे और रोग उत्पन्न हो जायेगा। यदि पेट में वायु बनने लगे तो पित्त का रोग और भी जल्दी होता है।
- . शराब, मांस, अंडे तथा तम्बाकू का सेवन करने के कारण पित्त का रोग उत्पन्न हो जाता है।
- . तले हुए तेज मिर्च-मसालेदार पदार्थों का भोजन में अधिक सेवन करने से पित्त का रोग हो सकता है।
- . पानी कम पीने के कारण भी पित्त का रोग हो सकता है।
- . जब 1 बार किया गया भोजन न पचे और उससे पहले ही व्यक्ति दुबारा भोजन कर ले तो उसे पित्त का रोग हो सकता है।
- . अधिक तनावपूर्ण जीवन तथा मानसिक रूप से परेशान रहने के कारण भी पित्त का रोग हो सकता है।
- . व्यायाम न करने के कारण भी पित्त का रोग हो सकता है।
- . किसी कारण से आमाशय के अंदर पित्त जमा हो जाने के कारण भी पित्त का रोग हो सकता है।
पित्त के रोग होने के लक्षण:-
- . पित्त के रोग हो जाने के कारण रोगी के शरीर में गर्मी बढ़ जाती है।
- . इस रोग से पीड़ित रोगी के छाती, गले तथा पेट में जलन होने लगती है।
- . इस रोग के कारण रोगी के सिर में दर्द होने लगता है।.........................................................more

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